" सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती...!!! दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए...!!! पहले मैं होशियार था, इसलिए दुनिया बदलने चला था, आज मैं समझदार हूँ, इसलिए खुद को बदल रहा हूँ।। बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर... क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.. मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।। ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न khuda badla .!!.. "