Archive for August 2014
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भूख ले जाती है ऐसे
''बेचता यूँ
ही नहीं है
आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे
मोड़ पर इंसान
को ।
सब्र की इक हद
भी होती है
तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब
तलक नारों से
दस्तरख़्वान को ।
शबनमी होंठों की गर्मी दे
न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में
उलझे हुए इंसान
को ।
पार कर
पाएगी ये
कहना मुकम्मल
भूल है,
इस अहद
की सभ्यता नफ़रत
के रेगिस्तान को''...
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कौन हूँ मैं,
कौन हूँ मैं,
अपने आप को पहचान नहीं पाई...
ना मेरा कोई वज़ूद है,
ना मेरा कोई अस्तित्व ।
मैं तो वो हूँ,
जिसने बचपन की अटखेलियाँ नहीं देखी..
वक़्त ने समय से पहले बड़ा कर दिया..
ज़िन्दगी की अनबुझ पहेलियों ने किनारा दिखाया,
वक़्त के थपेड़ों ने ज़िन्दगी सिखलाई ।
या फिर वो हूँ,
जिसने दिलों के रिश्ते टूटते देखे और
अपने आप को बिखरते देखा....
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पत्थरों के द्वार
पत्थरों के द्वार पर माथा पटक कर देखिए
खून से ताजा सना दामन झटक कर देखिए
तोडिए मत घर किसी का, या शीशा ए दिल
तोड़ने का शौक है तो खुद चटक कर देखिए
कब मिला है राजपथ पर या प्रगति मैदान में
ज़िन्दगी का सत्य गलियों में भटक कर देखिए
खुद ब खुद अच्छे बुरे का फैंसला हो जाएगा
एक दिन अपनी ही आँखों में खटक कर देखिए
कर चुके उपभोग अति उल्लास के अवसाद का
अब किसी असहाय आँसू में अटक कर देखिए....
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