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- भूख ले जाती है ऐसे
Posted by :
Unknown
Friday, 1 August 2014
''बेचता यूँ
ही नहीं है
आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे
मोड़ पर इंसान
को ।
सब्र की इक हद
भी होती है
तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब
तलक नारों से
दस्तरख़्वान को ।
शबनमी होंठों की गर्मी दे
न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में
उलझे हुए इंसान
को ।
पार कर
पाएगी ये
कहना मुकम्मल
भूल है,
इस अहद
की सभ्यता नफ़रत
के रेगिस्तान को''...