Posted by : Unknown Thursday, 24 July 2014




दिल से गयी ना कभी चाह तुम्हारी आँखों की,ख्वाबों को मिली ना पनाह 

तुम्हारी आँखों की..



भटकता रहा हूँ हमेशा ही दर बदर यूँ ही मैं,कभी मिली ना कोई राह 

तुम्हारी आँखों की..


तुम देख ना सके कभी मुझे अपनों की नज़र से,मेरी हर निगाह रही 

हमराह तुम्हारी आँखों की..


एक नज़र में ताउम्र को हम खुद से दूर हो गये,हर सदा ही करती रही 

गुनाह तुम्हारी आँखों की..


हम तो होते रहे कत्ल तुम्हारी चाहत में सदा ही,हर आरज़ू करती रही 

गुमराह तुम्हारी आँखों की..



तुमने निकाला तिनके के जैसे आँख से मुझ को आज भी ख्वाहिश है 

बेपनाह तुम्हारी आँखों की.....!!

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